Saturday, April 17, 2010

बथुआ में आयरन

सर्दी के मौसम में आसानी से उपलब्ध बथुए के साग को भोजन में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए ,बथुए के पतों का साग पराठे,रायता बनाकर या साधारण रूप में प्रयोग किया जाता है कब्ज़ में बथुआ अत्यंत गुणकारी है,अतः जो कब्ज़ से अक्सर परेशां रहते है उन्हें बथुए के साग का सेवन अवश्य करना चाहिए पेट में वायु हो गोला और इससे उत्पन्न सिरदर्द में भी यह आरामदायक है, आँखों में लाली हो या सुजन बथुए के साग के सेवन से लाभ होता है इसके अलावा चरम रोग ,यकृत विकार में भी बथुए के साग के सेवन से लाभ होता है बथुआ रक्त को शुद्ध कर उसमे वृद्धि करता है बुखार और उष्णता में इसका उपयोग बहूत ही कारगर होता है यह आयरन और कैल्सियम का अजस्त्र भंडार है औरतों को आयरनो तथ रक्त बढाने वाले खाद्यपदार्थ की ज्यादा जरूरत होती है अतः उन्हें इसके साग का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए खनिज लवणों की प्रचुरता से यह हरा साग-सब्जियां ,शरीर की जीवन शक्ति को बढाने खास लाभकारी होता है इसकी पतियों का रस ठंढी तसिरयुक्त होने के कारण बुखार, फेफड़ों एवं आँतों की सुजन में फायदेमंद है बथुए के रस बच्चों को पिलाने से उनका मानसिक विकाश होता है, बथुए का १०० ग्राम रस निकल कर पीने से पेट के कीड़े मर जाते है रस में थोडा-नमक मिलाकार पीने से पेट के कीड़े मर जाते है रस में थोडा सा नमक मिलाकर इससे ७ दिनतक सेवन करना चाहिये ५० ग्राम बथुए को एक ग्लास पानी में उबल-मसल कर छान कर पीने में स्त्रियों के मानसिक धर्म के गर बड़ी दूर होती है "( पथरी के रोगीओं को बथुए के साग का सेवन नहीं करना चाहिये ,क्युकी इसमें लौह तत्व अधिक होने के कारन पथरी का निर्माण होता है "बथुए के औषधीय महता :-----------बथुए के सेवन अनेक प्रकार के रोगों के निवारण के लिए भी इसका प्रयोग घरेलु औषधि के रूप में भी किया जाता है :- जैसे१. रक्ताल्पता :-- शरीर में रक्त की कमी पर बथुए का साग कुछ दिनों तक करने अथवा इसे आटे के साथ गुन्धकर रोटी बनाकर खाने से रक्त की वृद्धि होती है 2.त्वचा रोग :--- रक्त को दूषित हो जाने से त्वचा पर चकते हो जाते है ,फोड़े,फुंसी निकल आती है ऐसे में बथुए के साग के रक्त में मुल्तानी का लेप बनाकर लगाने से आराम मिलता है साथ में बथुए का साग बनाकर या रस के रूप में सेवन करना चाहिये इससे रक्त की शुद्धि होती है और त्वचा रोगों से छुटकारा मिलता है 3.फोड़ा :- बथुए की पतियों को सोंठ व नमक के साथ पीसकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा पककर फुट जाएगा या बैठ जायेगा ४. पीलिया :- कुछ दिनों तक बथुए का साग खाने या सूप बनाकर पीने से पीलिया ठीक हो जाता है ५. पीड़ारहित प्रसव :- बथुआ के १० ग्राम बीजों को कूटकर ५०० मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबाले, जब आधा पानी रह जाए तो उतारकर छानकर पियें ,डेलिवरी से २० दिन के पहले से इसका प्रयोग करना चाहिए इसमें बच्चा बिना ओपेरेसन के पैदा हो रहे है और प्रसव पीड़ा भी कम हो जाती है 6.उदार कृमी : - इसके सेवन से पेट के कृमी स्वत मर जाती है 7.जुआं और लीख :- बथुए की पतियों को उबालकर उस उबले हुए पानी से सिर धोने से सिर के सारे जुएँ ख़त्म हो जाते है 8.अनियमित मासिक धर्म :- ५० ग्राम बथुआ की एक ग्लास पानी में उबाल-छानकर नियमित कुछ दिनों तक पीने से तथा उसकी सब्जी बनाकर खाने से बथुआ की सब्जी हमेसा कुकड में बिना मिर्च मसाला के बनाकर खाना चाहिये

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